एक बालक को बाल्यावस्था में ही एक निःसंतान भीलनी ने चुरा लिया था। भीलनी बुरे कर्म और लूट-पाट से रत्नाकर का पालन-पोषण कर रही थी। इसका रत्नाकर पर काफी प्रभाव पड़ा और उन्होंने भी बड़े होकर अपने भरण-पोषण के इसे ही अपना लिया था। रत्नाकर को लगा लूट-पाट हत्या ही उनका कर्म है।
रत्नाकर विवाह के बाद कई संतानों के पिता बने और उन्हीं के भरण-पोषण के लिए उन्होंने पाप कर्म को ही अपना जीवन मानकर और भी अधिक घोर पाप करने लगे। एक बार उन्होंने वन से गुजर रहे साधुओं की मंडली को ही हत्या की धमकी दे दी। साधु के पूछने पर उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि वे यह सब अपने पत्नी और बच्चों के लिए कर रहे हैं। तब साधु ने उन्हें ज्ञान दिया और कहा कि जो भी पाप कर्म तुम कर रहे हो, उसका दंड केवल तुम्हें ही भुगतना पड़ेगा। तब साधु ने उन्हें कहा कि तुम जाकर अपने परिवार वालों से पूछकर आओ कि क्या वे तुम्हारे इस पाप के भागीदार बनेंगे?
वह नारद मुनि की बात पर विश्वास नहीं करने वाले थे किंतु वह सोच में डूब गए। इस प्रकार नारद मुनि से रत्नाकर ने कहा कि वह अगर परिवार से यह पूछने जाएगा तो आप सब साधु लोग भाग जाएंगे। तो रत्नाकर की इस शंका को दूर करने के लिए नारद मुनि ने कहा कि वह हमें यहीं पेड़ से बांध जाए। इस प्रकार रत्नाकर नारद मुनि को साधुओं संग बांधकर परिवार से यह पूछने गया कि वह उसके पाप में भागीदार होंगे या नहीं?
रत्नाकर के परिवार और पत्नी ने उन्हें फटकार लगा दी। रत्नाकर की पत्नी ने कहा कि वह परिवार का भरण-पोषण चाहे जैसे भी करें। इससे उन्हें कोई मतलब नहीं। रत्नाकर के पापों में भागीदार होने पर जब उनकी पत्नी और बच्चों ने अपनी असहमती प्रदान की तब उनकी आंखे खुल गईं। तब रत्नाकर को अपने द्वारा किए गए पाप कर्म पर बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने साधु मंडली को मुक्त कर दिया। साधु मंडली से क्षमा मांगी।
यह रत्नाकर कोई और नहीं महृषि वाल्मीकि थे, तब साधु ने उन्हें तमसा नदी के तट पर ‘राम-राम’ नाम जप ही अपने पाप कर्म से मुक्ति का यही मार्ग बताया। भूलवश वाल्मीकि राम-राम की जगह ‘मरा-मरा’ का जप करते हुए तपस्या में लीन हो गए।
इसी तपस्या के फलस्वरूप ही वह वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुए और रामायण की महान रचना की। वाल्मीकि ‘रामायण के रचयिता’ के नाम से अमर हो गए। ऋषि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण एक ऐसा महाकाव्य है जो हमें प्रभु श्रीराम के जीवन काल का परिचय करवाता है। जो उनके सत्यनिष्ठ, पिता प्रेम और उनका कर्तव्य पालन और अपने माता तथा भाई-बंधुओं के प्रति प्रेम-वात्सल्य से रूबरू करवा कर सत्य और न्याय धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इसके अलावा भी वाल्मीकि के विचार युगों-युगों के लिए अनुकरणीय हैं। इसलिए भगवान वाल्मीकि को महर्षि का दर्जा प्राप्त है। महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिवस आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। ऐसे महान संत और आदिकवि का जन्म देशभर में वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है।